November 20, 2012




June 25, 2012

यादें याद आतीं हैं

साल 2001 कई मायनों  में  एक मील  का  पत्थर  साबित हुआ . एक  ओर जहाँ  ओसामा  बिन  लादेन की मौत   अमेरिका  के  लिए खुशियाँ  लेकर   आया वहीं दूसरी ओर सुनामी की लहरों ने ने  पुरे जापान को तवाह कर दिया , अरब देशों में तानाशाह के खिलाफ जो गृह युद्ध हुये वो शायद  शताब्दी का सबसे ज्वलन्त मुद्दा था , तो आइये आप और हम  मिल कर उन्ही कुछ खट्ठी-मीठी यादों को ताज़ा करतें  हैं.....   



 बर्फ़बारी 



जापान  में सुनामी से  चंद मिनट पहले और चंद मिनट  बाद की तस्वीर 




वाल स्ट्रीट,  अमेरिका ( मंदी की  मार ) 
 बहिस्कार करने का अनोखा तरीका (USA )
 कुदरत  का कहर और अपनों को खोने का गम 
 वर्ल्ड ट्रेड सेंटर (USA )
 शायद हीं कोई चेहरा हो जो मुस्कुराता हुआ अच्छा ना लगे (जापान )
 जीत का जश्न (UK )
 जापान की विनाशक सुनामी 
 जापान - अकेली रोती  औरत (कुदरत का  कहर )
 US ARMY के शहीद होने के बाद उनका कुत्ता शोक मनाता हुआ 
 शांतिपुर्बक  बहिस्कार करने वालों पे काली मीर्च का स्प्रे करता  जवान 
 इराक -छात्र को  मुक्का मारता US ARMY 
 USA -ओसामा के  मरने की ख़ुशी 
 WHIRLPOOL -जापान 
 जापान  में सुनामी  के बाद  पानी में फासी बेटी को संताबना देता पिता 
 जापान- सेटेलाइट से सुनामी का लिया गया तस्वीर  
 भूकंप का खौफ - थाईलैंड 
 वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में मारे गये लोगों की आखरी याद 
 जापान-शायद शब्द  कम पड़ जाये (तबाही का अनुमान खुद लगा लीजिये) 
 USA -आग मे  फसे लोगों को निकलता कर्मचारी कर्मचारी 
 जापान-बेटे को समझाती माँ (सबकुछ खोने का गम )
  लिबिया - गदाफ्फी के खिलाफ AK- 47 चलाती महिला 
 USA - आग के साद  से बिल्डिंग से कुदती महिला 
 जापान - सुनामी 
 इराक फतह कर आती आती US ARMY 
 USA - ओसामा के मौत का COVERAGE देखते ओबामा  
 जापान-सुनामी 
 इराक-US ARMY से हाथ मिलाता बच्चा 
 जापान-तबाही का आलम 
जापान- कुछ  ना  बचा 
 जापान-तभी तबाही के बाद कुत्ते से खेलती महिला 
  चीन - I PHONE के जनक जनक स्टीव जोब्स जोब्स के कलाकृति को APPLE STORE के  बाहर देखता    बच्चा 
बहिष्कार @UK 

सुडान - "चलना हीं जिंदगी है चलती हीं जा रही है "




सूडान, आधिकारिक तौर पर सूडान गणराज्य, उत्तरी पूर्व अफ्रीका में स्थित एक देश है। यह अफ्रीका और अरब जगत का सबसे बड़ा देश है, इसके अलावा क्षेत्रफल के लिहाज से दुनिया का दसवां सबसे बड़ा देश है। इसके उत्तर में मिस्र, उत्तर पूर्व में लाल सागर, पूर्व में इरिट्रिया और इथियोपिया, दक्षिणपूर्व में युगांडा और केन्या, दक्षिण पश्चिम में कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य और मध्य अफ़्रीकी गणराज्य, पश्चिम में चाड और पश्चिमोत्तर में लीबिया स्थित है। दुनिया की सबसे लंबी नदी नील नदी, देश को पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में विभाजित करती है। इसकी राजधानी खार्तूम है। सूडान दुनिया के उन गिने-चुने देशों में शामिल है, जहां आज भी 3000 ईपू बसी बस्तियां अपना वजूद बचाए हुए हैं। यूनाइटेड किंगडम से 1956 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद सूडान को 17 साल तक चले लंबे गृह युद्ध का सामना करना पड़ा, जिसके बाद अरबी और न्यूबियन मूल की बहुतायत वाले उत्तरी सूडान और ईसाई और एनिमिस्ट निलोट्स बहुल वाले दक्षिणी सूडान के बीच जातीय, धार्मिक और आर्थिक युद्ध छिड़ गया, जिसकी वजह से 1983 में दूसरा गृहयुद्ध शुरू हुआ। इन लड़ाइयों के बीच कर्नल उमर अल बाशिर ने 1989 में रक्तविहिन तख्तापटल कर सत्ता हथिया ली। सूडान ने व्यापक आर्थिक सुधारों को लागू कर वृहदतर आर्थिक विकास दर हासिल की और 2005 में एक नया संविधान के माध्यम से दक्षिण के विद्रोही गुटों को सीमित स्वायत्तता प्रदान करने और 2011 में स्वतंत्रता के मुद्दे पर जनमत संग्रह कराने की बात सहमति बनने के बाद गृहयुद्ध समाप्त किया। प्राकृतिक संसाधन के रूप में पेट्रोलियम और कच्चे तेल से भरे-पूरे सूडान की अर्थव्यवस्था वर्तमान में विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। जनवादी गणराज्य चीन और रूस सूडान के सबसे बड़े व्यापार भागीदार हैं।



राजधानी -                                     खार्तूम
सबसे बडा़ नगर-                            ओमदुरमन
राजभाषा-                                      अरबी और अंग्रेजी
सरकार-                                         संघीय अध्यक्षीय लोकतांत्रिक गणराज्य
 राष्ट्रपति-                                      उमर अल-बशर
 उप-राष्ट्रपति-                                साल्वा किर मायारदीत
 संवैधानिक सलाहकार-                   मिन्नी मिन्नावी


गठन  
 - नूबिया का साम्राज्य                      2000 BC 
 - सेनार राजशाही                             1504 
 - मिस्र के साथ एकीकरण                 1821 
 - युनाइटेड किंगडम से स्वतंत्रता 1 जनवरी 1956 
 - वर्तमान संविधान                         9 जनवरी 2005  


क्षेत्रफल
 - कुल-                                             2,505,813 किमी² (10 वां)
 - जल(%)-                                       6 %


जनसंख्या
 - 2009 अनुमान  -                           42,272,000 (33 वां)
 - जन घनत्व -                                   16.9/किमी² 


सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)              {२००८ अनुमान}
 - कुल                                                $88.037 बिलियन (६९वां)
 - प्रति व्यक्ति                                    $2,309 (१३७वां)


मानव विकास सूचकांक  (२००७)-        0.531 (मध्यम) (१५० वां)
मुद्रा-                                                  सूडानी पाउंड (SDG)






June 23, 2012

झारखंड का विकास



झारखंड में विकास जोरों पर है. इसका पता झारखंड जाने वाली ट्रेन में ही लग जाता है. अधिकतर जवान..लेकिन तोंद निकली हुई. छोटे बच्चों से बोगी भरी हुई है. कोई ठेकेदारी करता है तो कोई ट्रकों का धंधा. कोई कोयले की दलाली में है तो कोई सूदखोरी में. सच में विकास जोरों पर है.
मोबाइल फोन पर लगातार बजते हुए गाने साबित करते हैं कि रांची के बच्चे भी छम्मक छल्लो और रा वन से आगे निकल कर रिहाना और लेडी गागा तक पहुंच सकते हैं. लेकिन हिंदी की चार पंक्तियां भी सही सही बोल लें वही बहुत है.
सत्यमेव जयते का फैन क्लब यहां भी है. लोग रिकार्ड कर के लैपटॉप पर आमिर से ज्ञान ले रहे हैं. दहेज पर. दहेज में लैपटॉप भी मिलता है ऐसा बिहार झारखंड के लोग कहते हैं. दहेज के लैपटॉप पर आमिर का ज्ञान कितना अच्छा लगता है. बोलने में अच्छा लगता है दहेज नहीं लेना चाहिए लेकिन लेने में बुरा किसी को नहीं लगता. दहेज नहीं वो तो विवाह खर्च होता है. बड़े घर में शादियां ऐसे ही होती है. सच में विकास जोरों पर है.
लैपटॉप पर फिल्में चल रही है. कुछ दिन पहले रिलीज हुई इश्कजादे. कोई फोन पर कह रहा है. हमारा पैसा क्यों नहीं दिए. कल आके ठोक देंगे तो ठीक लगेगा. बढ़ी तोंद वाला यह जवान ठेका पाने की खुशी में दारु-मुर्गा का न्योता भी दे चुका है. मसूरी से लौटता यह दंपत्ति दुखी है कि मसूरी में गर्मी थी और गुस्से में कि मसूरी से आगे कुछ देखने के लिए ही नहीं था. मसूरी में गर्मी की छुट्टियां बेकार हो गई हैं. उन्हें कौन बताए कि मसूरी से आगे देखने के हज़ारों खूबसूरत नज़ारे हैं. लेकिन झारखंड की जनता मसूरी जा रही है तो निश्चित है विकास ज़ोरों पर है.
शहर से गांव कस्बों की दूरी झारखंड में अधिक नहीं है. जमशेदपुर में बस से उतरते ही एक ऑडी, एक बीएमडब्ल्यू देखते ही मैं समझ जाता हूं कि मैं एक ऐसे शहर में हूं जो दिल्ली मुंबई के आगे हो जाना चाहता है. मैं मोटरबाइक पर ही निकलता हूं अपने घर की तरफ. छोटे छोटे गांवों से होते हुए कॉलोनी तक पक्की सड़क है लेकिन सड़क पर कारों की भरमार है. सूमो, बोलेरो और कभी कभी स्कार्पियो को भी साइड देना पड़ रहा है. छोटे वाहनों और पैदल चलने वालों की औकात ही नहीं है. ज़ाहिर है विकास जोरों पर है.


सड़क के दोनों ओर तैनात जंगल अब कट गए हैं. टाटा बढ़ रहा है. कटे जंगलों की जगह विकास के सबसे बड़े मॉडल फ्लैट बन रहे हैं. फ्लैट में रहने का पहला मतलब है आप विकसित हैं. बचपन में हम ऐसे घरों को दड़बा कह कर हंसा करते थे. हमें नहीं पता था कि ये हमारा भविष्य है. भले ही इन फ्लैटों के बनने में जंगल के जंगल तबाह हो जाएं लेकिन यही हमारा विकास है. यही झारखंड की प्रगति है.
फ्लैट कम होते जाते हैं और गांव आने लगते हैं. मैं सूकून पाता हूं हरियाली में लौटते ही. सड़कों के किनारे मिट्टी और पत्थरों को मिला कर बनाए गए आदिवासियों के घर मेरे बचपन की यादों का अहम हिस्सा रहे हैं. इतनी सपाट तो सीमेंट की दीवारें नहीं होती. यदा कदा चारखाने की धोती दिखती है. काली गठीली देह पर यह छोटी धोती फबती खूब है. वैसे शर्ट पैंट पतलून का विकास तो पहले ही हो चुका था. अब लोग जूते भी पहनते हैं. मोजे के साथ. सच में विकास जोरों पर है.
हाड़तोपा के पास तिलका मांझी की एक प्रतिमा मेरे सामने ही लगी होगी. तिलका मांझी चौक बाबा तिलका चौक हो गया है. तिलका मांझी को बाबा तिलका होने में ज्यादा समय नहीं लगा है.. इतने ही कम समय में झारखंड का विकास भी हो गया है.
आगे ही एक मैदान है जहां फुटबॉल के मैच देखने हर रविवार को आया करते थे. मैदान भी है. गोल पोस्ट भी है. खिलाड़ी भी हैं लेकिन फुटबॉल गायब है. क्रिकेट खेला जा रहा है. विकास हो रहा है निश्चित रुप से. फुटबॉल से क्रिकेट तक आना विकास ही कहा जाएगा क्योंकि क्रिकेट तो भद्र लोगों का खेल है. फुटबॉल तो लातिन अमरीका और अफ्रीका के बर्बर देश भी खेलते हैं. मेरा शक सुबहा अब यकीन में बदल गया था कि झारखंड में विकास ज़ोरों पर है.
...........ऐसा नहीं की मैं झारखण्ड की तरक्की नहीं देखना चाहता बल्कि मैं चाहता हूँ  की यहाँ की मूलवासी दुनिया को देखे और झारखण्ड  की राजनीति को समझे की ये नेता जो यहाँ की मूलवासी के हितेषी होने का  दावा तो करती है  पर क्या करती है इसका जवाब यही  है  की पिछले 9 सालों  में यहाँ  9 सरकारें  आई और गई .....मैं चाहता हु की यहाँ के युवा लेडी गागा , रीहाना, और एनरीक का गाना सुनने के साथ साथ उन्हें जाने और साथ में ये भी जाने की दुनिया में क्या हो रहा है..... कई ऐसे लोग भी  होंगे  जो मेरे विचारों से सहमत नहीं होंगे  पर झारखण्ड- जहाँ खनीज की इतनी प्रचुरता है अगर यह  किसी अन्य राज्य में होता तो .............इसका जवाब  हैं।

June 20, 2012

बिहार में रेलवे प्लेटफॉर्म पर पढ़ाई

बिहार के रोहतास जिले के सासाराम स्टेशन के एक लैम्पपोस्ट के नीचे छात्रों के एक गुट को रोज पढ़ाई करते देखा जा सकता है.
रात के समय, आसपास गुजरती ट्रेनों के शोर और यात्रियों की भीड़ से बेखबर वो घेरे में बैठकर अपना काम करते जाते हैं.
23 वर्षीय सरोज कुमार, एक ट्रक ड्राइवर के बेटे हैं. हाल ही में उन्होंने रेलवे और स्कूल टीचर की दो परीक्षाएं पास कीं.
पिछले दो वर्षों से वो यहां ट्रेन पकड़ने या किसी और काम से नहीं बल्कि अपनी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए आते रहे हैं.
अपनी कामयाबी का श्रेय वो सासाराम स्टेशन को देते हैं, लिहाजा उन्होंने रेलवे की नौकरी करने का फैसला किया है.
उनकी तरह ही बिजली से वंचित सैंकड़ों बच्चे, सूरज ढलने के बाद सासाराम स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक पर मिलकर पढ़ाई करते हैं.
इनमें से ज्यादातर बहुत गरीब तबके के हैं और कोचिंग की सुविधा नहीं ले सकते.

बिहार में बिजली गुल

ये छात्र एक घेरे में बैठते हैं. बीच में एक छात्र परीक्षा की गाइड से सवाल पूछता है तो आसपास वाले जोर-जोर से जवाब देते हैं ताकि सबको सब सुनाई दे.
यहां पढ़नेवाले ज्यादातर छात्र भारतीय रेलवे और बैंकों में नौकरी की परीक्षाओं की तैयारी करते हैं.
सरोज बताते हैं, “यहां पिछले दस वर्षों से छात्र आ रहे हैं और उनकी कोशिश रहती है कि वो देर तक पढ़ाई करें, हम यहां आते हैं क्योंकि हमारे इलाकों में बिजली कटौती होती रहती है.”
कई अन्य राज्यों की तरह बिहार में बिजली का घोर संकट है. बिहार में बिजली की प्रति व्यक्ति खपत देश की औसत खपत का करीब 17 प्रतिशत ही है.
यहां आकर पढ़ाई करनेवाले एक छात्र राहुल कुमार कहते हैं, “यहां ज्यादातर वो छात्र होते हैं जो शहर में एक कमरा किराए पर लेकर रह रहे हों लेकिन कई ऐसे भी हैं जो रोज 50-60 किलोमीटर का सफर तय करके आते हैं
              बिहार के रोहतास जिले के सासाराम स्टेशन के एक लैम्पपोस्ट के 
               नीचे छात्रों के एक गुट को रोज पढ़ाई करते देखा जा सकता है.
रात के समय, आसपास गुजरती ट्रेनों के शोर और यात्रियों की भीड़ से बेखबर वो घेरे में बैठकर अपना काम करते जाते हैं.
23 वर्षीय सरोज कुमार, एक ट्रक ड्राइवर के बेटे हैं. हाल ही में उन्होंने रेलवे और स्कूल टीचर की दो परीक्षाएं पास कीं.
पिछले दो वर्षों से वो यहां ट्रेन पकड़ने या किसी और काम से नहीं बल्कि अपनी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए आते रहे हैं.
अपनी कामयाबी का श्रेय वो सासाराम स्टेशन को देते हैं, लिहाजा उन्होंने रेलवे की नौकरी करने का फैसला किया है.
उनकी तरह ही बिजली से वंचित सैंकड़ों बच्चे, सूरज ढलने के बाद सासाराम स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक पर मिलकर पढ़ाई करते हैं.
इनमें से ज्यादातर बहुत गरीब तबके के हैं और कोचिंग की सुविधा नहीं ले सकते.

बिहार में बिजली गुल

ये छात्र एक घेरे में बैठते हैं. बीच में एक छात्र परीक्षा की गाइड से सवाल पूछता है तो आसपास वाले जोर-जोर से जवाब देते हैं ताकि सबको सब सुनाई दे.
यहां पढ़नेवाले ज्यादातर छात्र भारतीय रेलवे और बैंकों में नौकरी की परीक्षाओं की तैयारी करते हैं.
सरोज बताते हैं, “यहां पिछले दस वर्षों से छात्र आ रहे हैं और उनकी कोशिश रहती है कि वो देर तक पढ़ाई करें, हम यहां आते हैं क्योंकि हमारे इलाकों में बिजली कटौती होती रहती है.”
कई अन्य राज्यों की तरह बिहार में बिजली का घोर संकट है. बिहार में बिजली की प्रति व्यक्ति खपत देश की औसत खपत का करीब 17 प्रतिशत ही है.
यहां आकर पढ़ाई करनेवाले एक छात्र राहुल कुमार कहते हैं, “यहां ज्यादातर वो छात्र होते हैं जो शहर में एक कमरा किराए पर लेकर रह रहे हों लेकिन कई ऐसे भी हैं जो रोज 50-60 किलोमीटर का सफर तय करके आते हैं

स्टेशन वाले स्टूडेन्ट्स’

"यहां पिछले दस वर्षों से छात्र आ रहे हैं और उनकी कोशिश रहती है कि वो देर तक पढ़ाई करें, हम यहां आते हैं क्योंकि हमारे इलाकों में बिजली कटौती होती रहती है."

सासाराम के प्लेटफॉर्म पर पढाई करनेवाले ये छात्र ‘स्टेशन वाले स्टूडेन्ट्स’ के नाम से मश्हूर हैं. ये बहुत सुव्यवस्थित तरीके से पढ़ाई करते हैं.
राहुल कुमार बताते हैं, “हम पैसे इकट्ठा कर प्रश्न-पत्रों की प्रतियां बनवा लेते हैं और फिर परीक्षा की ही तरह उन्हें एक तय समयावधि में हल करने की कोशिश करते हैं.”
राहुल के मुताबिक कई बार वो छात्र यहां आकर इनसे अपने अनुभव और जानकारी बांटते हैं, जो इसी प्लेटफॉर्म पर पढ़ाई कर कोई परीक्षा पास कर अब नौकरी कर रहे हैं.
यहां पढ़ाई करनेवाले छात्रों का दावा है कि हर वर्ष करीब 100 ‘स्टेशन वाले स्टूडेन्ट्स’ किसी सरकारी नौकरी की परीक्षा में उतीर्ण हो नौकरी पाते हैं.