खुशामदीद तुम आये
ये ऊंचा पहाड़ तुम्हे देखता है
और मैं ढूंढता हूँ शब्द
तेरी उन हर ख़ामोशी का
जिसे मैं शायद मैं कभी समझा नहीं
नज़रों को पढता हूँ तेरी
उन दिनों के तार जोड़ता हूँ
जो कहीं गुम से हैं इस शहर में
उन पगडंडियों को
देखता रहता हूँ अपलक
हांथों में हाथें दाल
चले थे जिनपे हम कभी
तुम्हारे होने का अबतक है एहसास
उन पगडंडियों , गलियों और उन फुठपाथों को
अब तुम मत जाना
हम वादियाँ फिर से चुन लायेंगे
बेहिसाब यादों की रंगिनिया
और उन्हें सहजता से निखर देंगे
इतिहास का पन्ना बने
गुमनाम उन पलों को .....!!!
(दो शब्द उस पारी के लिए -१४ फरबरी २०११)
ये ऊंचा पहाड़ तुम्हे देखता है
और मैं ढूंढता हूँ शब्द
तेरी उन हर ख़ामोशी का
जिसे मैं शायद मैं कभी समझा नहीं
नज़रों को पढता हूँ तेरी
उन दिनों के तार जोड़ता हूँ
जो कहीं गुम से हैं इस शहर में
उन पगडंडियों को
देखता रहता हूँ अपलक
हांथों में हाथें दाल
चले थे जिनपे हम कभी
तुम्हारे होने का अबतक है एहसास
उन पगडंडियों , गलियों और उन फुठपाथों को
अब तुम मत जाना
हम वादियाँ फिर से चुन लायेंगे
बेहिसाब यादों की रंगिनिया
और उन्हें सहजता से निखर देंगे
इतिहास का पन्ना बने
गुमनाम उन पलों को .....!!!
(दो शब्द उस पारी के लिए -१४ फरबरी २०११)
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