November 25, 2011
एक आतंकवादी का जीवन
November 19, 2011
ये पाकिस्तान है , यहाँ सब अजीब ही होता है
क्या आप बता सकते हैं कि सेक्स, लैवेंडर, मिथ्याभिमान, क्विकी, बट्ट, मैंगो और पुडिंग जैसे अंग्रेजी शब्दों में क्या समानता है ?
समानता यह है कि ये उन 1000 शब्दों की सूची में शामिल हैं जिन्हें पाकिस्तान का दूरसंचार प्राधिकरण आपत्तिजनक मानता है.
दूरसंचार प्राधिकरण के इस फैसले ने आम पाकिस्तानियों को सकते में डाल दिया है क्योंकि वो ये तय नहीं कर पा रहे हैं कि इस फैसले का स्वागत करें, इससे विचलित हों या फिर इसका विरोध करें.दूरसंचार प्राधिकरण ने पाकिस्तान के सभी मोबाइल ऑपरेटरों से कहा है टेक्सट मैसेज में इस्तेमाल किए गए ऐसे किसी भी शब्दो को ब्लॉक कर दिया जाए.पाकिस्तान की तमाम वेबसाइट्स पर ऐसे शब्दों की एक अपुष्ट लिस्ट का प्रचार किया जा रहा है जिन्हें अश्लील माना जा सकता है. इसके बावजूद इनमें से कुछ शब्द ऐसे हैं जिनसे अति उत्तेजक स्वभाव वाले लोग भी नाराज़ हो गए हैं.हालाँकि कुछ पाकिस्तानियों ने संचार प्राधिकरण का ये कहकर शुक्रिया अदा किया कि प्राधिकरण ने उन्हें ऐसे शब्दों से अवगत कराया है जिनसे वो अब तक अंजान थे.
येलोमैन क्या है?
ट्विटर के 140 अक्षरों वाले पोस्ट में शायद ये पहला मौक़ा हो जब आया है कि 'मंकी, क्रॉच, एथलीट्स फ़ुट और येलोमैन' जैसे शब्दों का सिलसिलेवार प्रयोग हो रहा है.ट्विटर पर बार-बार #Pta bannedlist का टैग लगाकर इन शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है.कुछ लोग जहां इन शब्दों के मतलब पूछ रहे हैं, वहीं एक तबका सरकार के इस फैसले से काफी गुस्से में है.वो लोग कहते हैं कि पीटीए ने प्रतिबंधित सूची इसलिए जारी की है क्योंकि वो अपने बारे में सच सुनने की हिम्मत नहीं रखती.
'सेंसरशिप का लंबा इतिहास'
पाकिस्तान में सेंसरशिप का एक लंबा इतिहास रहा है. पत्रकारों के साथ सार्वजनिक तौर पर दुर्व्यवहार होने के अलावा सत्ता का विरोध करने वालों पर हमले भी हो चुके हैं.
लेकिन कुछ लोगों ने इस लिस्ट में भी ग़लतियां ढूंढनी शुरु कर दी हैं, मसलन इस लिस्ट में ग़लत तरीके से लिखेगए 'मैस्टबेशन' से जुड़े सभी शब्दों के इस्तेमाल पर तो रोक है, लेकिन इस शब्द के सही से लिखे गए स्पेलिंग पर कोई रोक नहीं है.आश्चर्यजनक तौर पर इस लिस्ट में जीज़स क्राइस्ट और सेटन जैसे शब्द भी शामिल हैं. कुछ लोग उस 'विद्वान' को ढूंढ रहे हैं जो ये सूची बनाकर संचार तंत्र में शालीनता लाना चाहता है.
'लिस्ट-एक सुरक्षा तंत्र'
पाकिस्तान की नियामक संस्था के प्रवक्ता मोहम्मद यूनुस ने गार्डियन अख़बार को बताया है कि ये बैन मोबाइल उपभोक्ताओं की शिकायतों के बाद लागू किया गया है.कुछ मोबाइल उपभोक्ताओं को आपत्तिजनक संदेश मिलने की शिकायत के बाद ये कदम उठाया गया.अंत में आम पाकिस्तानी ये मानता है कि उसके अंदर सृजनशीलता कूट-कूट कर भरी है और संचार प्राधिकरण की सेंसरशिप के बावजूद वो अपनी भावनाओं को बख़ूबी व्यक्त कर सकता है.जबकि दूरसंचार प्राधिकरण के अनुसार ये सूची युवाओं की सुरक्षा के लिए बनाई गई है.
जहाँ और भी हैं
मुंबई की एक चौड़ी और ट्रैफ़िक से भरी सड़क के एक चौराहे पर एक छोटे क़द का इंसान दोनों हाथ ऊपर उठाए और हाथ में एक बोर्ड लिए एक पैर पर खड़ा है.
दोपहर का समय है. सूरज सर के ऊपर है. नवंबर का महीना ज़रूर है लेकिन मुंबई में सर्दी कब होती है.इस इंसान का नाम है कृष्ण अवतार उर्फ़ कृष्ण दास. कृष्ण दास पिछले तीन वर्षों से अमिताभ बच्चन के घर के क़रीब जुहू सर्किल नामक इस चौराहे पर दिन भर खड़े रहते हैं और राहगीरों, वाहन चालकों, ट्रैफ़िक पुलिस वालों और आम आदिमयों को मुस्कुरा कर सबसे प्रेम करने और अपने धर्म पर चलने का पैग़ाम देते आ रहे हैं.लेकिन यह इंसान गर्मी की परवाह न करके मुस्कुराते हुए कई घंटों से खड़ा है और अगले कई घंटों तक खड़ा रहेगा. बोर्ड पर बड़े अक्षरों में लिखा है, "अपने धर्म पर चलो. सबसे प्रेम करो."
प्यार का यह संदेश कोई नई बात नहीं. संत और महात्मा यह पैग़ाम सदियों से देते चले आ रहे है. लेकिन 50 वर्षीय ये साधू कहते हैं कि प्रेम का इस्तेमाल सबसे पहले घर से शुरू किया जाए, तो आदमी सुखी रहेगा और घर से बाहर भी ख़ुशी का माहौल बनाना पसंद करेगा.
सुबह जॉगिंग करने वालों की एक बड़ी भीड़ होती है. इसका मतलब ये हुआ कि इन संदेशों के बारे में लोगों में उत्सुकता ज़रूर जागेगी.
कृष्ण दास कहते हैं, "लोग इन पैग़ामों को पढ़ते हैं और मेरे पास आकर सवाल करते हैं. आम तौर से लोगों को मेरी यह कोशिश पसंद है और हमें काफ़ी समर्थन मिलता है. लेकिन ज़ाहिर है कुछ लोगों को यह कोशिश बेमानी लगती है और वो अपने विचारों को खुल कर प्रकट भी करते हैं."
जॉगिंग करती एक जोड़ी ने कहा कि वो बाबा की कोशिश को सराहते हैं, लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं. लोग उनके पैग़ाम को पढ़ते हैं और जुहू बीच से बाहर जाते ही भूल जाते हैं. लेकिन अधिकतर लोग कृष्ण दास की कोशिशों की प्रशंसा करते सुनाई दिए.
गन्ने के रस की एक दुकान वाले ने कहा कि वो बाबा की लगन से बहुत प्रभावित हैं.
वो कहते हैं, "बाबा को हर रोज़ मैं यहाँ देखता हूँ. बारिश हो या बरसात. गर्मी हो या धूप, वो यहाँ ज़रूर आते हैं. हर रोज़ सुबह को यह तख्तियां रेत में गाड़ते हैं और व्यायाम करते हैं. फिर लोग उनके पास आते हैं और इन तख्तियों पर लिखे संदेशों के बारे में पूछते हैं."
फ़िल्मी जगत के अलावा भी लोग उनका प्रोत्साहन बढ़ाते हैं. वो कहते हैं, "मुझे बुर्के वाली मुस्लिम महिलाएं भी आकर बधाई देती हैं और कहती हैं कि मेरा पैग़ाम सही है."
कृष्ण दास कहते हैं कि वो किसी से पैसे या और किसी तरह की मदद नहीं लेते. तो फिर वो अपना पेट कैसे भरते हैं?
जवाब में कृष्ण दास कहते हैं, "मेरे गुरु संत मुरारी बापू मेरी देखभाल करते हैं. ये वही संत हैं, जिन्होंने विश्व धर्म सम्मलेन करवाया था और तब से मैं उनका भक्त हो गया हूं."
कृष्ण दास कहते हैं कि वो सबसे अच्छा मार्गदर्शन देने वालों में से एक हैं. वो शिष्य नहीं बनाते, लेकिन मैंने मुरारी बाबू को अपना गुरु बना लिया है.
November 18, 2011
November 17, 2011
जीना इसी का नाम है
ओन्त्लामेत्से फलास्टर जी हाँ यही नाम है इस छोटी सी अफ्रीकान लड़की का ...इसकी उम्र केवल १२ साल है .ये एक ऐसे रोग से पीड़ित है जिसका इलाज संभव नहीं है . डॉक्टर का कहना है की ये अब बस चंद दिनों की मेहमान है . उनका कहना है की ये ऐसी सिंड्रोम से पीड़ित है जिसमे आदमी का दिल ८-२१ साल के अन्दर फेल हो जाता है ...
पर शायद ही फलास्टर को पता हो की ये क्या होता ही..वो तो बस अपने स्कूल और खेल में लगी है......क्या पता कल हो न हो .....आखीर जीना इसी का नाम है .
"यादें अतीत की....."
खुशामदीद तुम आये
ये ऊंचा पहाड़ तुम्हे देखता है
और मैं ढूंढता हूँ शब्द
तेरी उन हर ख़ामोशी का
जिसे मैं शायद मैं कभी समझा नहीं
नज़रों को पढता हूँ तेरी
उन दिनों के तार जोड़ता हूँ
जो कहीं गुम से हैं इस शहर में
उन पगडंडियों को
देखता रहता हूँ अपलक
हांथों में हाथें दाल
चले थे जिनपे हम कभी
तुम्हारे होने का अबतक है एहसास
उन पगडंडियों , गलियों और उन फुठपाथों को
अब तुम मत जाना
हम वादियाँ फिर से चुन लायेंगे
बेहिसाब यादों की रंगिनिया
और उन्हें सहजता से निखर देंगे
इतिहास का पन्ना बने
गुमनाम उन पलों को .....!!!
(दो शब्द उस पारी के लिए -१४ फरबरी २०११)
ये ऊंचा पहाड़ तुम्हे देखता है
और मैं ढूंढता हूँ शब्द
तेरी उन हर ख़ामोशी का
जिसे मैं शायद मैं कभी समझा नहीं
नज़रों को पढता हूँ तेरी
उन दिनों के तार जोड़ता हूँ
जो कहीं गुम से हैं इस शहर में
उन पगडंडियों को
देखता रहता हूँ अपलक
हांथों में हाथें दाल
चले थे जिनपे हम कभी
तुम्हारे होने का अबतक है एहसास
उन पगडंडियों , गलियों और उन फुठपाथों को
अब तुम मत जाना
हम वादियाँ फिर से चुन लायेंगे
बेहिसाब यादों की रंगिनिया
और उन्हें सहजता से निखर देंगे
इतिहास का पन्ना बने
गुमनाम उन पलों को .....!!!
(दो शब्द उस पारी के लिए -१४ फरबरी २०११)
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