October 25, 2009
October 13, 2009
क्या तुमसे कहूँ....!
क्या तुम से कहूँ......!!
मैं किस लिए जीता हूँ
शायद की कभी मिल जाओ कहीं
मैं इस लिए जीता हूँ .
जीने का मुझे कुछ शौक नहीं
बस वक़्त गुज़ारा करता हूँ
कुछ देर उलझ कर यादों में
दुनिया से किनारा करता हूँ .
मरता भी उसी की खातिर हूँ मैं
जिस के लिए जीता हूँ
शायद की कभी मिल जाये कहीं
मैं इस लिए जीता हूँ .
मैं हूँ की सुलगता रहता हूँ
बुझता भी नहीं ...
जलता भी नहीं
दिल है की तपड़ता रहता है
रुकता भी नहीं
चलता भी नहीं .
जीने की तमन्ना मिट भी चुकी
फिर किस लिए जीता हूँ
शायद की कभी मिल जाओ कहीं
मैं इस लिए जीता हूँ
जीने का मुझे कुछ शौक नहीं
बस वक़्त गुज़ारा करता हूँ .
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