दूर कहीं मुझे ले चल ,
मतलब के इन सायों से ,
अपनों और परायों से ,
दूर कहीं मुझे ले चल !!
कहीं नहीं अब आरजू मेरी ,
कहीं नहीं है मेरा वतन ,
टूट के तुझमे मिल जाऊँ ,
कतरा - कतरा अंगारों से !!
टूट के तुझमे मिल जाऊँ ,
कतरा - कतरा अंगारों से !!
क्यूँ मुझे तू छोड़ चली ,
तन्हा मतलब की बस्ती में ,
दूर तलक विराना है ,
शहर दीखे न राहों में !!
चाह नहीं अब दिल में , फिर भी ,
मुड़ के देख फिजायों में ,
एक साथ टूटे खावों की
महक मिलेगी हवायों में !!
सबको तन्हा छोड़ चला मैं
साथ चली है बस यादें ,,
अंत समय माफी चाहे दिल
कपट किए जो यारों से !!
दूर चला है एक परिंदा ,
धुप भरी इन छायों से ,
मतलब के इन सायों से ,
अपनों और परायों से !!
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