August 8, 2009

दूर कहीं मुझे ले चल

( ये मेरे दिल की आवाज़ है , उसके जाने के बाद ,जो मैंने दो दिन पहले लिखा है , मुझे नही पता मैं मर पाउँगा या नही , पर अब जीने की तमन्ना तो नही है , इस लिए डर भी जाता रहा । मेरे मरने के बाद लोग जो भी बोलें , पर मेरे लिए तो ये एक नए सफर की सुरुआत है , अपने रब से मिलने की आखरी कोशिश ..........मरने के बाद मैं उस से मिल पायूँगा या नही , मैं नही जनता , और मैं एस तर्क मैं पड़ना भी नही चाहता , मैं तो बस यही जनता hun की उस से मुझे कैसे भी मिलना है , किसी भी tarike से , मैं एस तर्क में नही parunga की मैं मिल पायूँगा या नही , मेरे पास बस यही एक akhri रास्ता है ................ jispsr मैं चल रहा hu॥ )

दूर कहीं मुझे ले चल ,
मतलब के इन सायों से ,
अपनों और परायों से ,
दूर कहीं मुझे ले चल !!
कहीं नहीं अब आरजू मेरी ,
कहीं नहीं है मेरा वतन ,
टूट के तुझमे मिल जाऊँ ,
कतरा - कतरा अंगारों से !!

क्यूँ मुझे तू छोड़ चली ,
तन्हा मतलब की बस्ती में ,
दूर तलक विराना है ,
शहर दीखे न राहों में !!

चाह नहीं अब दिल में , फिर भी ,
मुड़ के देख फिजायों में ,
एक साथ टूटे खावों की
महक मिलेगी हवायों में !!

सबको तन्हा छोड़ चला मैं
साथ चली है बस यादें ,,
अंत समय माफी चाहे दिल
कपट किए जो यारों से !!

दूर चला है एक परिंदा ,
धुप भरी इन छायों से ,
मतलब के इन सायों से ,
अपनों और परायों से !!


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