March 2, 2009

तेरी यादों के साये



बार बार आती हो रुला जाती हो तुम,
कभी याद बनकर कभी खाव्ब बनकर,
पलकों से दो मोटी चुरा जाती हो तुम ,
यहाँ पर हमारा वतन तो नहीं हैं
--शहर है तुम्हारा सता जाती हो तुम ॥
पूछें जो सवाब इन आसुयों का ,
चुपके से आकर मुस्कुरा जाती हो तुम,
कभी खवाब बनकर कभी याद बनकर,
पलकों से दो मोटी चुरा जाती हो तुम ॥
Posted by bthoms at 8:08 PM

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