February 10, 2009

यादों का समंदर


बार बार आती हो रुला जाती हो तुम,


कभी याद बनकर कभी खाव्ब बनकर,


पलकों से दो मोटी चुरा जाती हो तुम ,


यहाँ पर हमारा वतन तो नहीं हैं


--शहर है तुम्हारा सता जाती हो तुम


पूछें जो सवाब इन आसुयों का ,


चुपके से आकर मुस्कुरा जाती हो तुम,


कभी खवाब बनकर कभी याद बनकर,


पलकों से दो मोटी चुरा जाती हो तुम ॥